आंकड़ों से गरीबी मिटातीं सरकारें

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राकेश कुमार शर्मा 

 

आंकड़ो का नाम  सुनकर सबसे पहले दिमाग में जो चीज़ उभरती है वो है ऊँचे नीचे ग्राफ और रेखाओं का जाल वास्तव में यह जाल भारत की जनता को फंसाने के लिए सरकारें देश की आजादी के बाद से ही फैलाती आ रही हैं और जनता भी बिना हाथ पैर मारे इस जाल में फंस ही जाती है ये आंकड़ों के जाल  बड़े ही शातिराना ढंग से बनाये जाते हैं जिनमे सरकारें हर हाल में जनता रुपी मछलियों को फंसाती हैं और ये जाल इतनी बारीकी से बुने जाते हैं कि फंसे होने के बावजूद भी जनता को महसूस ही नहीं होता कि वो इस जाल में फंसे हुए हैं ऐसा नहीं है कि केवल सरकारें ही इसमें शामिल होती हैं इसमें सरकार  के साथ विभिन्न एजेंसियां जैसे बैंक जिन पर जनता के आर्थिक भविष्य को उज्व्वल करने का दारोमदार होता है उन्हें भी इसमें शामिल किया जाता है या कहें कि वो भी खुद शिकार का आनंद लेने के लिए इसमें शामिल हो जाती हैं

भारत में गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य के लिए आज़ादी के बाद से ही सरकारें सतत प्रयत्नशील रही हैं फिर चाहे वे इस लक्ष्य के आसपास भी न फटक पाई हों परन्तु आंकड़ों के जाल बिछा के वो हम आपको यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि उन्होंने लक्ष्य का कुछ भाग प्राप्त कर लिया है फिर नए वित्तवर्ष के लिए नयी योजनाओं का जाल बिछना शुरू हो जाता है पिछली यूपीए सरकार के समय में गरीबी रेखा का सूचकांक जारी किया गया था जो कि एक निश्चित अन्तराल पर केंद्र सरकार द्वारा प्रतिपादित किया जाता है  जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाला कोई व्यक्ति यदि 672.8  रूपये प्रति महीने अर्थात 22.42 रूपये प्रतिदिन कमाता है तो वो गरीब नहीं है वास्तविक रूप से यह गरीबी और गरीबों का मजाक उड़ाने के अलावा और कुछ नहीं है पर जैसा कि पहले ही बता चूका हूँ कि यह आंकड़ों का जाल है और जनता को तो फंसना ही है  

अब बात करते हैं बैंक की सामान्य तौर पर बैंक लोगों के धन को अपने पास जमा करके उस धन पर कुछ प्रतिशत ब्याज खाताधारक को देते हैं और बहुत से खाताधारकों के धन को एकत्र करके दूसरे व्यवसायों में लगाते हैं अथवा लोन के रूप मे दूसरे व्यवसायियों को अधिक दर पर देते हैं जिससे वो ज्यादा ब्याज कमाते हैं

अब आंकड़ों के जाल की असल बात यह है कि वर्तमान केंद्र सरकार ने नोटबंदी के बाद कैशलेस अभियान छेड़ा हुआ है जिस पर बहुत जोर शोर से केंद्र सरकार प्रचार प्रसार कर रही है जिसमें बैंकों को भी शामिल किया गया है बैंकों ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए बचत खाते में न्यूनतम धन की उपलब्धता प्रतिमाह 1000 रूपये निर्धारित की है जो कि यदि कम हुई तो उस पर दंड स्वरूप शुल्क काटा जायेगा और चार बार से अधिक कैश निकालेंगे तो उस पर भी शुल्क लगेगा अब आप डिजिटल पेमेंट करने को बाध्य होंगे इसका तात्पर्य समझे आप ?

 

शायद नहीं, है ना !

आइये समझते हैं 

1000 रूपये प्रतिमाह से पूरे वर्ष में आपके खाते में 12000 रूपये आपको हर हाल में मेंटेन रखने होंगे और अतिरिक्त शुल्क से बचने के लिए आप डिजिटल पेमेंट भी करेंगे जाहिर सी बात है तो अब 12000  को 365 से भाग दीजिये तो आता है 32.87 रूपये प्रतिदिन यानि गरीबी सूचकांक से 10 रूपये ज्यादा तो अब आप गरीब नहीं रहे अमीर हो गए हैं और सरकार आंकड़ों के जाल में फंसा कर आने वाले कुछ सालों में खुद अपनी पीठ थपथपा कर शाबासी दे लेगी और आप आंकड़ों के जाल में उलझे ही रह जायेंगे