जीवन और रिश्तों को निगलती राजनीती
Written By राकेश कुमार शर्मा
भारतीय समाज में राजनीति को प्रबुद्ध वर्ग द्वारा हमेशा से गन्दी कीचड़ कहा जाता रहा है, परंतु मैं समझता हूँ कि इस कीचड़ में उतरने की लालसा हर किसी के अंतर्मन में हिलोरें लेती ही होगी फिर चाहे वह राजनीति रुपी इस कीचड़ में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होकर पूर्ण हो अथवा किसी राजनितिक खिलाड़ी का समर्थक बन कर प्राप्त हो। अभी हाल के दिनों में उत्तरप्रदेश में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुईं है जिनसे यह स्पष्ट होता है कि आम आदमी आजकल राजीनीति की मृग मरीचिका में उलझ कर केवल कल्पित स्वप्नों को संजो कर अपना सर्वस्व खो रहा है!
प्रथम घटना समाजवादी पार्टी के परिवारिक घटनाक्रम के साथ हुई जिसमें लखनऊ में दो युवाओं ने अखिलेश के अति समर्थन में स्वयं को आग लगा ली थी
दूसरी घटना सादाबाद विधान सभा क्षेत्र के सहपऊ की है जहाँ दो नेताओं के समर्थकों में खूनी संघर्ष के चलते एक युवक अपने जीवन से हाथ धो बैठा
तीसरी घटना सबसे विस्मित और व्यथित करने वाली है जिसने मेरे अंतर्मन को हिला कर रख दिया है, खुर्जा विधान सभा क्षेत्र से रालोद की टिकट पर चुनाव लड़ रहे व्यक्ति ने चुनावी सहानुभूति पाने के लालच में अपने ही सगे छोटे भाई और उसके मित्र की हत्या करवा दी जो की बड़ी ही ह्रदय विदारक और सोचनीय घटना है ।
प्रश्न यह उठता है कि व्यक्ति आखिर किस मूल्य पर राजनितिक लालसा या महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहता है
क्या दो युवकों द्वारा खुद को आग लगा लेने से मुलायम और शिवपाल मान गए ?
या अखिलेश यादव की नजर में उन दोनों की साख बढ़ गयी होगी? यदि ऐसा हुआ भी हो तो इसका मूल्य उन दोनों को क्या चुकाना पड़ा ये वो अब सोचते ही होंगे
दूसरी घटना में समर्थक इस दुनिया से ही चला गया और अपने पीछे अपने परिवार को बिलखता छोड़ गया उसने क्या कीमत चुकाई राजनीती की
तीसरी घटना ने तो अचंभित ही कर दिया जिस भाई की जीत के लिए छोटा भाई दिन रात मेहनत करके दिन रात एक कर रहा था उसी भाई को मौत की नींद
सुला दिया राजनीती की लालसा ने ।
दरअसल राजीनीति का चस्का ही ऐसा है कि वो चाहे जिस रूप में लगे उसका स्वाद बार बार चखने की आदत बन जाती है और आदत लत बन जाती है जिसे पूरा करने के लिए हम कीमत चुकाते हैं ।
पर ये सोचने और समझने का विषय है कि राजनीती की अपेक्षा आपके के लिए आपके जीवन का मूल्य अधिक है,
जीवन होगा तभी तो राजनीति कर पाएंगे आप